What is Project Sashakt and how it will work
Finance Minister Piyush Goyal unveiled 'Project Sashakt', a five-prong strategy to deal with non-performing assets. Sashakt aims to strengthen the credit capacity, credit culture and credit portfolio of public sector banks.
The Centre accepted Project
Sashakt in the first week of July 2018,which is a five-pronged strategy to
resolve bad loans, with the larger ones going to an asset management company
(AMC) or an Alternative investment fund (AIF)
What
is Project Sashakt?
Project Sashakt was proposed
by a panel led by PNB chairman Sunil Mehta. The Five-Prong Approach is as under:-
1. Outlining SME Resolution approach for Bad loans of up to ₹50 crore - which will
be managed at the bank level, with a deadline of 90 days.
2. Bank-led Resolution Approach for bad loans between ₹50-500 crore - Under this approach banks will enter an inter-creditor agreement@, authorizing the
lead bank to implement a resolution plan in 180 days, or refer the asset to
NCLT.
3. AMC_AIF Resolution Approach for loans above ₹500 crore - The panel recommended an independent AMC,
supported by institutional funding through the AIF. The idea is to help
consolidate stressed assets.
4. NCLT / IBC Resolution Approach &
5. Asset-Trading Platform Approach.
How
will the national AMC work?
According to the committee,
banks will have to set up an AMC under which there will be multiple
sector-specific AIFs. These funds will invest in the stressed assets bought by
existing ARCs, such as ARCIL. The ARCs will use the funds to redeem security
receipts issued to banks against the bad loans. Other AMC-AIFs and ARCs will be
allowed to bid for these assets, and match the pricing offered by ARCIL or the
national AMC. The AMC will be responsible for the operational turnaround of the
asset.
Who
will own the stressed asset?
The ARC after buying the asset
from lenders will transfer ownership to the AIF. The new owner, the AMC-AIF,
will hold a stake of at least 76%.
What
do investors think about the plan?
While investors are optimistic
about the AMC-AIF structure, they believe that pricing will be key to complete
the transaction. The Mehta panel suggested that the bidding process follow a
market-led approach, inviting bids from AMCs, ARCs and AIFs. Existing players,
such as ARCIL and the national AMC, will be allowed to set the floor price for
the bad assets, while other players will be asked to either match the price or
better it.
What
is the money involved?
The total quantum of bad loans
worth ₹500 crore or more is estimated at ₹3 trillion. According to SBI chairman
Rajnish Kumar, the AMC will require funds of ₹1.2 trillion, assuming a 40% loan
recovery. Of this, 60-70% is expected to come from domestic institutions and
banks, including SBI, and the remaining 30-35% from foreign investors. The AMC
will require funding for six to 24 months, said Kumar.
@ Inter-Creditor Agreement:- Banks and financial institutions, including SBI, PNB and LIC entered on 23rd July 2018, into an overarching inter-creditor agreement (ICA) to fast-track resolution of stressed assets of Rs 50 crore or more which are under consortium lending. The ICA is being signed by 22 public sector banks (including India Post Payments Bank), 19 private sector banks and 32 foreign banks. Besides, 12 major financial intermediaries, like LIC, HUDCO, PFC and REC are also signatories to the pact, according to the agreement.
As many as two dozen lenders signed the inter-creditor agreement (ICA) on Monday the 23rd July 2018, to tackle bad loans between Rs 50-500 crore, adding up to Rs 3.1 lakh crore. Under the agreement, a borrower will be given an opportunity to ‘cure’ the default and a reference for resolution will be made within 30 days of the default, if not repaid.
The agreement, part of the government’s measure to deal with bad loans under Project Sashakt, will be effective by the end of this month. Under the pact each resolution plan will be submitted by the lead lender to an Overseeing Committee. “The lead lender that is the lender with the highest exposure shall be authorized to formulate the resolution plan, which shall be presented to the lenders for their approval."
Under the ICA framework, the decision making will be by way of approval of ‘majority lenders’, those with 66 per cent share in the aggregate exposure. Once a resolution plan is approved by the majority lenders, it will be binding on all the lenders that are a party to the ICA. Each resolution plan that is formulated in terms of the ICA shall be in compliance with the RBI circular and all other applicable laws and guidelines.
While the agreement will primarily focus on the Rs 50-500 crore category, it can also be used for assets within the Rs 500-2,000 crore range. According to the agreement, the lead bank will be paid a fee for its services.
एनपीए की समस्या से निपटने हेतु ‘सशक्त’ योजना की घोषणा
सरकार बैंकों के फंसे हुए कर्ज (NPA) की समस्या से निपटने के लिए प्रोजेक्ट सशक्त का ऐलान किया है. इसके तहत पांच सूत्रीय फॉर्मूला पेश किया गया है. सरकार इसे एनपीए से निपटने के लिए लांग ट्रम स्ट्रेटजी बता रही है. सरकार एनपीए की समस्या से निपटने के लिए बैड बैंक नहीं बनाने जा रही है लेकिन वह इसके लिए असेट मैनेजमेंट कंपनियों और स्टीयरिंग कमेटियों का गठन करेगी.
देश के सरकारी बैंकों के एनपीए अर्थात् नॉन परफॉरमिंग एसेट्स की समस्या को दूर करने के लिए एक समग्र नीति लागू किये जाने की घोषणा की गई है. यह समग्र नीति ‘प्रोजेक्ट सशक्त’ के नाम से लागू होगी जिसे सुनील मेहता की अध्यक्षता में गठित समिति की रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया गया है.
'सशक्त' योजना के तहत पांच सूत्री फॉर्मूला लागू किया जाएगा. वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि देश में करोड़ रुपये से ज्यादा राशि के 200 बैंक खाते हैं. इनमें तकरीबन तीन लाख करोड़ रुपये के कर्ज फंसे हैं.
'सशक्त' योजना के तहत पांच सूत्री फॉर्मूला लागू किया जाएगा. वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि देश में करोड़ रुपये से ज्यादा राशि के 200 बैंक खाते हैं. इनमें तकरीबन तीन लाख करोड़ रुपये के कर्ज फंसे हैं.
प्रोजेक्ट योजना सम्बंधित प्रमुख तथ्य
• पचास करोड़ रुपये तक के फंसे कर्ज खातों के निपटारे के लिए हर बैंक में एक संचालन समिति का गठन किया जाएगा. इसका फायदा छोटी व मझोली कंपनियों को सबसे ज्यादा होगा कि उन पर ही 50 करोड़ रुपये तक का एनपीए है.
• समिति 90 दिनों के भीतर इन सभी खातों के बारे में फैसला करेगी कि इन्हें और ज्यादा कर्ज देने की जरुरत है या इनके खाते को बंद करने की जरुरत है.
• 50 से 500 करोड़ रुपये तक के एनपीए खाता के लिए यह फैसला किया गया है कि उनके बारे में लीड बैंक की अगुवाई में फंसे कर्जे के निपटारे का फैसला किया जाएगा.
• इस श्रेणी के खाताधारकों को एक से अधिक बैंक कर्ज देते हैं इसलिए एक कर्ज देने वाले बैंकों के बीच एक समझौता किया जायेगा.
• 500 करोड़ रुपये से ज्यादा राशि के अन्य एनपीए खाते जिनका निपटारा एएमसी के जरिए भी नहीं हो सकेगा उन्हें दिवालिया कानून के तहत ही सुलझाया जाएगा.
• इसे लागू करने के लिए इन बैंकों की एक स्क्रीनिंग समिति भी गठित होगी जो यह देखेगी कि तय नियमों का पालन पारदर्शी तरीके से किया जा रहा है या नहीं.
सुनील मेहता
समिति का गठन
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जून 2018 में वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने पंजाब नेशनल बैंक की
अगुवाई में समिति का गठन किया गया जिसकी अध्यक्षता सुनील मेहता को सौंपी गई. इस
समिति को ‘बैड बैंक’ जैसी संरचना की व्यावहारिकता परखने एवं दो सप्ताह में
संपत्ति पुनर्निर्माण कम्पनी के गठन के लिए सिफारिश देने के लिए कहा गया.
इस समिति में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के चेयरमैन
रजनीश कुमार, बैंक ऑफ़ बड़ोदा के
प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी पी एस जयकुमार तथा एसबीआई के उप
प्रबंध निदेशक सी वेंकट नागेश्वर शामिल थे.
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इस योजना का लाभ यह होगा कि इन ग्राहकों से ऋण वसूलने का झंझट बैंकों पर नहीं रहेगा. गोयल ने बताया कि एएमसी पूरी तरह से बाजार आधारित होंगे और देश में एक से ज्यादा एएमसी का गठन हो सकता है. इसमें देसी-विदेशी कंपनियां भी शामिल हो सकती हैं. यह प्रावधान किया जा रहा है कि एएमसी 60 दिनों के भीतर एनपीए का निपटारा करेंगे.
स्ट्रेस्ड एसेट से निपटने के
लिए करीब दो दर्जन कर्ज देने वाली संस्थाओं ने एक समझौता किया है। इस समझौते में
शामिल ज्यादातर सरकारी बैंक हैं। इन सभी के बीच में इंटर क्रेडिटर्स एग्रीमेंट (ICA) पर हस्ताक्षर हुए। इस समझौते के बाद 500 करोड़ रुपए तक के स्ट्रेस्ड एसेट का जल्द निपटान किया जा सकेगा।
सशक्त प्रोजेक्ट का हिस्सा है यह समझौता
यह समझौता सशक्त प्रोजेक्ट का हिस्सा है। पीएनबी के पूर्व चेयरमैन सुनील
मेहता की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी थी, जिसकी सिफारिशों के आधार पर यह योजना बनाई गई थी। इस कमेटी ने जुलाई की शुरुआत
में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस कमेटी में अन्य दो सदस्यों में SBI के प्रमुख रजनीश कुमार और बैंक ऑफ बड़ौदा के प्रमुख पीएस जयाकुमार शामिल थे।
-इस समझौते के बाद
बैंक और अन्य वित्तीय संस्थानों के बीच एक प्लेटफार्म तैयार हो जाएगा जो NPA में फंसे पैसों की वसूली में मदद करेगा। इस वक्त बैंक और वित्तीय संस्थानों
का करीब 12 फीसदी पैसा बैड
लोन के रूप में है। इस समझौते की मदद से बैंक अपने 50 से 500 करोड़ रुपए तक के
फंसे हुए लोन की वसूली तेजी से कर सकेंगे।
ज्यादा बैंक ले चुके हैं बोर्ड से अनुमति
मेहता के अनुसार इंटर क्रेडिटर्स एग्रीमेंट हो चुका है। ज्यादातर बैंकों ने
अपने बोर्ड से इसकी अनुमति ले ली है और जो बाकी हैं वह यह प्रोसेस तेजी से पूरा कर
रहे हैं। इस कदम का उद्देश्य फंसे हुए कर्ज की वसूली तेज करना है। उनके अनुसार आज यह ए्ग्रीमेंट 18 सरकारी बैंकों, तीन निजी क्षेत्र
के बैंक सहित एग्जिम बैंक ने इस पर साइन किया है। उनके अनुसार अभी कई बैंक और वित्तीय
संस्थान इस समझौते पर साइन करेंगे। यह संस्थान अपने बोर्ड से इस सबंध में
अप्रूवल लेने की तैयारी में है।
जुलाई के अंत तक इस पर शुरू हो जाएगा काम
उन्होंने कहा कि जुलाई के अंत यह समझौता आपरेशनल हो जाएगा। उन्होंने आशा
जताई कि जल्द ही सभी बैंक इसका हिस्सा बन जाएंगे। मेहता के अनुसार इस समझौते पर
विदेशी बैंकों ने अभी साइन नहीं किया है। इसके लिए उन्हें अपने बोर्ड से अप्रूवल
लेना होगा।
बैंकों का फंसा है काफी पैसा
मार्च 2018 तक बैंकों का 50 से लेकर 500 करोड़ रुपए का बैड
लोन करीब 3.10 लाख करोड़ रुपए का
है। वहीं 50 करोड़ रुपए से कम
के लोन में बैंकों का करीब 2.10 लाख करोड़ रुपए
फंसा हुआ है।