Wednesday, January 26, 2011

६२वा गणतंत्र दिवस- बदलता परिद्रश्य

आज हम ६२वा गणतंत्र दिवस मन रहे हैं |

जहाँ एक ओर हमें अपने गणतंत्र दिवस से कुछ शिकायतें हैं, जैसे कि भ्रष्टाचार  का बोलबाला है , गरीब और भी गरीब हो रहा है | समाज के कुछ पिछड़े तबके के लोग अभी भी बुनियादी जरूरतों से महरूम हैं | हमारे धर्म गुरु आज अपने मज़हबों  में जो भी शिक्षा दे रहे हैं वह आजादी के दीवानों के द्वारा देखे गए सपनो से बिलकुल भिन्न एवं लीग से हट कर है| आज हमें जो भी शिक्षा मिल रही है उसे में कहीं न कहीं कमी है और वह जोड़ने के बजाये विभिन्न प्रांतीय वर्गों में बटने कि ओर ले जा रही है| राजनीति में स्वार्थ एवं आदर्शों का ह्रास तथा नैतिक मूल्यों का पतन ही नज़र आरहा है| हमारे पूर्वजों ने जो सपनों को देखा था राजनीति उससे दूर हटती नज़र आ रही है |     

हमें फिर भी अपने  गणतंत्र दिवस पर गर्व महसूस होना चाहिए | आज़ादी के वक़्त हमारे पूर्वजों ने जिस वैज्ञानिक और आर्थिक संरचना की नीव डाली थी, उसकी बदौलत हमारा भारतवर्ष आज पूरी दुनिया में एक उभरती हुई ताकत है जिसका सभी समर्थ एवं ताकतवर देश लोहा मानते हैं | आज भारत की एक अग्रणी देशों की श्रेणी में गिनती की जाती है |  हमने एशियाड   तथा कामनवेल्थ खेलों का आयोजन कर साबित कर दिया की हम भी किसी से कम नहीं हैं | महंगाई जरूर बढ़ी है पर प्रत्येक व्यक्ति की आमदनी में भी इजाफा हुआ है,तथा वैज्ञानिक विकास हुआ है | चाहे कोई भी क्षेत्र  हो,  चाहे शिक्षा हो, डिफेंस हो, बैंकिंग हो, परिवहन श्रेणी हो हमने निरंतर प्रगति की है |


हमें अपनी संस्कृतिक गतिविधियों को जारी रखते हुए उसकी रक्षा करना है | हमें अपनी समस्यायों  से जूझते हुए उनका समाधान करते हुए प्रगति एवं उन्नति की ओर बढ़ते रहने की जरूरत है | हमें आगे भी कामयाबी पाने से कोई नहीं रोक पायेगा | 

अतः शिकायतें अपनी जगह भले ही हों हमें खुद पर एवं गणतंत्र पर गर्व करने की पर्याप्त वज़ह हैं|

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